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इ खबरटुडे, रतलाम २९ वैशाख १९३७ (19 मई 2015) : बैंक से मिले किसी चैक
या ड्राफ्ट पर यदि सन 2015 के स्थान पर सन 1937 लिखा हो, और साल के पांचवे
महीने के स्थान पर दूसरा महीना लिखा हो तो आप निश्चित तौर पर चौंक जाएंगे। एक
बार तो लगेगा कि कहीं चैक या ड्राफ्ट अवैध तो नहीं है। लेकिन नहीं,यह भारत का
राष्ट्रीय कैलेण्डर है,जिसे लगभग भुलाया जा चुका है। महाराष्ट्र के अभय केशव
मराठे विगत सात वर्षों से भारत के राष्ट्रीय कैलेण्डर को स्थापित करने के
अभियान में जुटे है।
राष्ट्रीय दिनदर्शिका को
रोजमर्रा के व्यवहार में लाने के अभियान के तहत रतलाम आए श्री मराठे ने बताया
कि सामान्यतया भारत के अधिकांश लोग,सरकारी कार्यालय,बैंक इत्यादि अपने दैनन्दिन
कार्य में ग्रेगोरियन या अंग्रेजी कैलेण्डर और तिथियों का ही उपयोग करते है।
भारत के राष्ट्रीय कैलेण्डर का उपयोग आमतौर पर नहीं किया जाता,इसलिए अधिकांश
लोग इसे भूल चुके है। जबकि भारत की स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार ने वर्ष
1952 में भारत का राष्ट्रीय कैलेण्डर बनाने के लिए दिनदर्शिका पुनर्रचना समिति
गठित की थी और इस समिति ने 1955 में अपनी सिफारिशें भारत सरकार को प्रस्तुत की
थी। इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 1957 में शक संवत आधारित भारतीय
कैलेण्डर को भारत के राष्ट्रीय कैलेण्डर का दर्जा दिया गया था। श्री
मराठे ने बताया कि राष्ट्रीय कैलेण्डर को वैज्ञानिक तौर पर बनाया गया है और यह
भी अंग्रेजी कैलेण्डर के ही समान आसान है। इस कैलेण्डर में भी महीने में 30 या
31 दिन ही होते है। पंचाग के पन्द्रह दिनों जैसी गणना इस कैलेण्डर में नहीं
है।
महाराष्ट्र के संभाजीनगर के निवासी अभय केशव मराठे ने बताया कि वे विगत सात
वर्षों से भारत की राष्ट्रीय दिनदर्शिका को स्थापित करने के अभियान में जुटे
है। इसके लिए वे देश के अनेक हिस्सों में प्रवास कर चुके है। श्री मराठे ने
बताया कि शुरुआती दिनों में तो वे इसके लिए व्यक्तिगत तौर पर प्रयास करते
रहे,लेकिन पिछले एक वर्ष से उन्होने इसके लिए राष्ट्रीय दिनदर्शिका प्रसार मंच
नामक संस्था गठित कर कार्य प्रारंभ किया है।
श्री मराठे ने बताया कि सबसे पहले उन्होने शक संवत 1927(इस्वी सं 2005) में
स्टेट बैंक आफ इन्दौर में एक हजार रुपए का एक डिमाण्ड ड्राफ्ट बनवाने के दौरान
ड्राफ्ट पर भारतीय तारीख अंकित करने की मांग की। पहले तो बैंक अधिकारियों ने
टालमटोल की,लेकिन श्री मराठे के दबाव डालने पर उन्होने ड्राफ्ट पर भारतीय तिथी
अंकित की। इसके बाद तो श्री मराठे बाकायदा इसी कार्य में जुट गए। यहां तक कि
निजी बैंकों तक में उन्होने भारतीय तिथी वाले ड्राफ्ट जारी करने का दबाव बनाया।
जब एक बैंक ने इसे अस्वीकार किया तो वे रिजर्व बैंक तक पंहुचे। आखिरकार रिजर्व
बैंक ने तमाम बैकों को इस आशय के निर्देश जारी किए कि यदि कोई चैक या ड्राफ्ट
पर भारतीय शक संवत का अंकन चाहता है,तो उसे इंकार नहीं किया जा सकता। उसे
भारतीय शक संवत की तिथी अंकित कर चैक या ड्राफ्ट देना होगा।
श्री मराठे ने बताया कि राष्ट्रीय दिनदर्शिका प्रसार मंच गठित करने के बाद अब
उनकी संस्था पूरे देश में ऐसे सदस्य बना रही है,जो यह संकल्प लेते है कि वे
अपने दैनन्दिन कार्य व्यवहार में राष्ट्रीय तिथी शक संवत का ही उपयोग करेंगे।
श्री मराठे स्वयं भी हर बात में शक संवत की तिथियों का ही उपयोग करते है। उनकी
संस्था के पैन कार्ड पर भी उन्होने शक संवत की तिथी ही अंकित करवाई है। जन्म और
मृत्यु प्रमाणपत्र अथवा विवाह पंजीयन प्रमाणपत्र इत्यादि पर भी वे राष्ट्रीय शक
संवत का अंकन करवाते है। उनकी संस्था की पहल पर औरंगाबाद महानगर पालिका ने एक
प्रस्ताव पारित कर महानगर पालिका द्वारा जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्रों पर शक
संवत की भारतीय तिथियों का अंकन भी अनिवार्य कर दिया है।
श्री मराठे के मुताबिक जब 1957 में भारत की राष्ट्रीय दिनदर्शिका को स्वीकृत
किया गया था,तब ऐसे निर्देश दिए गए थे कि किसी भी दस्तावेज अथवा
कार्य व्यवहार में मुख्यरुप से भारतीय तिथी और शक संवत का उपयोग किया
जाएगा और अंग्रेजी तिथी और सन को कोष्ठक मे लिखा जाएगा,लेकिन समय गुजरने के साथ
इसका पालन बन्द होता गया और भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर पूरी तरह नदारद हो
गया।
श्री मराठे ने बताया कि हाल ही में उन्होने
केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी से मुलाकात कर
सीबीएसइ स्कूलों में बच्चों को भारतीय कैलेण्डर सिखाने का सुझाव दिया है। साथ
ही यह भी निवेदन किया है कि जहां भी अंग्रेजी तिथियां लिखी जाती है,उसके स्थान
पर मुख्य रुप से शक संवत की तिथियां लिखी जाए और कोष्ठक में अंग्रेजी तिथी दर्ज
की जाए। उन्होने रेल मंत्री सुरेश प्रभू को पत्र लिख कर मांग की है कि रेलवे के
टिकट पर भी राष्ट्रीय तिथियों का अंकन किया जाए।
श्री मराठे और उनकी संस्था इन दिनों भारतीय तिथियों वाले कैलेण्डर,डायरी
इत्यादि प्रकाशित कर उनका वितरण करते है ताकि अधिक से अधिक लोग अपने दैनन्दिन
व्यवहार में भारतीय तिथियों का उपयोग प्रारंभ करें। वे जब भी किसी से कोई चैक
या ड्राफ्ट लेते है,तब उनकी शर्त होती है कि उस पर भारतीय तिथी अंकित की जाए।
उनके द्वारा प्रकाशित कैलेण्डर पर भी लोगों से अपील की गई है कि वे अपने चैक और
ड्राफ्ट आदि पर शक संवत का उपयोग करें और करवाएं और यदि किसी बैंक के कर्मचारी
या अधिकारी इससे इंकार करें तो वे श्री मराठे की संस्था से सम्पर्क करे।
Maharashtra Times(म. टा. प्रतिनिधी) : ११ भाद्र १९३७ (02 Sep 2015) राष्ट्रीय दिनदर्शिका हा राष्ट्राच्या अस्मितेचा प्रश्न आहे मात्र, केंद्रासह राज्याचे सरकारही या दिनदर्शिकेबाबत उदासीन असल्याची खंत राष्ट्रीय दिनदर्शिका प्रसार मंचाचे अभय मराठे यांनी व्यक्त केली. नागपुरात आले असता ते ‘मटा’शी बोलत होते. राष्ट्रीय दिनदर्शिकेला कायद्याने मान्यता आहे. १ एप्रिल १९५७ नंतर जन्मलेल्या विद्यार्थ्याचा दाखला देताना त्यावर राष्ट्रीय दिनदर्शिकेनुसार दिनांक लिहावी, असे आदेश आहे पण तसे होत नाही असे सांगून मराठे म्हणाले की, का होत नाही याचे कारण कुणीच सांगत नाही. या दिनदर्शिकेनुसार तारखा लिहून काम कशाला वाढवून घ्यायचे, असे त्यांना वाटते. पण राष्ट्रीय विषयाकडे अशा वृत्तीने पाहणे योग्य नाही. हा विषय देशभराच्या शाळांमध्ये लावून धरण्यासाठी आपण केंद्रीय मनुष्यबळ विकास मंत्री स्मृती इराणी यांचीही भेट घेतली. रेल्वे मंत्रालयाला पत्र लिहून त्यांना रेल्वे तिकिटांवर राष्ट्रीय दिनांकानुसार तारीख टाकण्याची विनंती केली तशीच विनंती टपाल विभागालाही केली आहे, असे त्यांनी सांगितले.
म. टा. प्रतिनिधी, औरंगाबाद : ८ आषाढ़ १९४१ (29 Jun 2019) राष्ट्रीय
दिनदर्शिका प्रसार मंचच्या राष्ट्रीय अध्यक्षपदी सरोज देशपांडे, तर सचिवपदी
नारायण पांडव यांची निवड झाली आहे.मंचाची बैठक नुकतीच कलश मंगल कार्यालयात
झाली. त्यात नूतन कार्यकारणीची निवड करण्यात आली. राष्ट्रीय अध्यक्षपदी सरोज
विवेक देशपांडे यांची निवड करण्यात आली. उर्वरित कार्यकारणी पुढीलप्रमाणे: मानद
संस्थापक सदस्य अभय मराठे, उपाध्यक्ष दिनेश गुप्ता (दिल्ली), सहसचिव गिरीश
दातार, कोषाध्यक्ष उदय आठवले, सहकोषाध्यक्ष विवेक देशपांडे, सोशव मीडिया प्रमुख
वृंदा कुलकर्णी (डोबिवली), वासुदेव कोल्हटकर, गिरीश परांजपे (पुणे), कार्यकारणी
सदस्य जयंत दास्ताने, सुविनय दामले, किशोर काकडे (बेळगाव). प्रास्ताविक अभय
मराठे यांनी केले. सूत्रसंचालन नारायण पांडव यांनी केले, तर जयंत दास्ताने
यांनी आभार मानले. महाराष्ट्र, दिल्ली तसेत कर्नाटकमधून मंचाचे ३०हून अधिक
प्रमुख सदस्य, पदाधिकारी उपस्थित होते.